Tuesday, September 16, 2014

सलवटें

पिछली बार जब हम मिले थे

और तुम जब आँखें बंद करके

खुश्बुओं को गुनगुना रही थी

तब तुमसे छुपते छुपाते चोरी से

उस वक्त के दो चार लमहे चुरा कर ले आया था

आज बड़े सलीके से साँसों में परत दर परत कुछ सलवटें बिछाई हैं

उन लमहों को सम्भाल सम्भाल कर उन परतों में छुपा दिया है

किसी दिन जब बेजान ज़हन फिर से सांसें गुड़गुड़ाएगा

तो हवाओं की परतों के साथ छुपे लमहे

फिर से अंगड़ाईयाँ लेते हुये दौड़ेंगे मेरी नसों में.   


तब तक चलो सांसों में सलवटें बिछाता रहता हूँ.    

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