अमावस में चाँद ढ़ूँढते ढ़ूँढते
एक अजनबी सा मिला आकाश में
कुछ अजीब से लिबास में
गुनगुनाते अहसास में
अपनी ज़मीन के बहुत ही पास में
“कौन हो तुम?
पहले कभी दिखे नहीं असमान में”
बोला वो बड़ी शान से
“वही तो हूँ
सदियों से तो देखते रहो हो मुझे लाल पोशाक में
बस फितरत आज कुछ बदली है
हरकत आज कुछ बदली है
बावला हो कर घूमता हूँ आज
तिरंगे की छाँव में”
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