पिछली बार जब हम मिले थे
और तुम जब आँखें बंद करके
खुश्बुओं को गुनगुना रही थी
तब तुमसे छुपते छुपाते चोरी से
उस वक्त के दो चार लमहे चुरा कर ले आया था
आज बड़े सलीके से साँसों में परत दर परत कुछ सलवटें
बिछाई हैं
उन लमहों को सम्भाल सम्भाल कर उन परतों में छुपा
दिया है
किसी दिन जब बेजान ज़हन फिर से सांसें गुड़गुड़ाएगा
तो हवाओं की परतों के साथ छुपे लमहे
फिर से अंगड़ाईयाँ लेते हुये दौड़ेंगे मेरी नसों
में.
तब तक चलो सांसों में सलवटें बिछाता रहता हूँ.